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जगदीश राय ढोसीवाल |
श्री मुक्तसर साहिब, 12 अक्टूबर - पड़ोसी मुलक श्री लंका समेत भारत के दक्षिणी राज्यों में महात्मा रावण के कई मंदिर बने हुए हैं। महात्मा रावण को एक सच्चे गुरू की तरह पूजा जाता है। वहां कभी भी महात्मा रावण के पुतले नहीं जलाए जाते। ज्यादातर देश के उत्तरी भागों में ही दशहरे वाले दिन महात्मा रावण के पुतले जलाए जाते हैं। सदियों से चली आ रही प्राचीन सोच और रवायत अनुसार इस दिन पुतले फूक कर बुराई पर सचाई की तथा कथित जीत को दरसाया जाता है। महात्मा रावण का पुतला फूकने से कई करोड़ लोगों के हृदय को भारी ठेस पहुंची है। एल.बी.सी.टी. (लार्ड बुद्धा चैरीटेबल ट्रस्ट) के चेयरमैन और आल इंडिया एस.सी./बी.सी./एस.टी. एकता भलाई मंच के राष्ट्रीय प्रधान दलित रत्न जगदीश राय ढोसीवाल ने दशहरे वाले दिन महात्मा रावण के पुतले को फूकने की रवायत को बेहद निंदनीय करार दिया है। श्री ढोसीवाल ने आज यहां कहा है कि पूरे देश में गलत नीतियों कारण मेंहगाई, निजीकरन, किसान विरोधी, मुलाजिम/पैंशनर, भ्रष्टाचार और भाई भतीजा वाद की बुराई की मार पड़ रही है। देश का हर निवासी इस बुराई की मार झेल रहा है। प्रधान ढोसीवाल ने अपील की है कि दशहरे वाले दिन महात्मा रावण के पुतले फूकने की बजाए इन बुराईयों के पुतले फूके जाएं ताकि देश के हाकमों की आँखें खुल जाए और इनका समाधान हो सके। ऐसा होने से ही असल में अच्छाई की बुराई पर जीत होगी।